Thursday, 14 December 2017

कंपनियों का एकीकरण | AMALGAMATION OF COMPANIES


वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में छोटी कम्पनियाँ, बड़ी कंपनियों के सामने टिक नहीं पाती है, क्योंकि छोटी कम्पनियाँ छोटे स्तर पर उत्पादन करती है जिससे लागतें अधिक तथा लाभ कम होते है | इनकी अपेक्षा बड़ी कम्पनियाँ बड़े स्तर पर उत्पादन करती है तथा बाजार का नियंत्रण इनके हाथों में रहता है | छोटी कम्पनियाँ बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बड़ी कंपनियों के साथ एकीकरण करती है | दूसरे शब्दों में एकीकरण बड़े स्तर पर लाभ कमाने के लिए एक जैसा व्यापार करने वाली दो कंपनियों के आपसी संयोजन का एक तरीका है |लेखा मानक 14 के अनुसार कंपनियों के एकीकरण का व्यवहार किया जाता है |


वर्तमान में कार्य कर रही दो या दो से अधिक कंपनियों का समापन करके उनके स्थान पर एक नई कंपनी की स्थापना कर दी जाती है, जिससे एक कंपनी अस्तित्व में आ जाती है | इसे ही एकीकरण कहा जाता है | एकीकरण दो प्रकार का होता है -
  1. क्रय के स्वभाव का एकीकरण 
  2. विलय के स्वभाव का एकीकरण (Merger)
नीचे लिखी गई सभी शर्तें यदि पूरी हो जाए तो ऐसा एकीकरण विलय के स्वभाव का एकीकरण कहलाता है -
  1. क्रेता कंपनी, विक्रेता कंपनी की सभी सम्पतियों एवं दायित्वों को ख़रीदे |
  2. सम्पतियों एवं दायित्वों को पुस्तक मूल्य पर ख़रीदे |
  3. क्रय प्रतिफल का भुगतान पूर्णतया अंशों में हो |
  4. एकीकरण के पश्चात विक्रेता कंपनी के 90% या उससे अधिक अंशधारक क्रेता कंपनी के अंशधारक बन जाए |
  5. क्रेता कंपनी, विक्रेता कंपनी के व्यापार को भविष्य में चालू रखने का इरादा रखती हो |
क्रय प्रतिफल की गणना 

(1)जब एकीकरण विलय के स्वभाव का हो - इस स्थिति में क्रय प्रतिफल की गणना करते समय कंपनी की सभी प्रकार की सम्पतियों के पुस्तक मूल्यों का योग कर लिया जाता है तथा इसमे से सभी दायित्वों (पूंजी को छोड़ते हुए) को कम कर  दिया जाता है | शेष बची राशि क्रय प्रतिफल कहलाती है |

(2)जब एकीकरण क्रय के स्वभाव का हो - क्रय के स्वभाव के एकीकरण में क्रय प्रतिफल ज्ञात करने की चार विधियाँ है | इनमें से जो भी उपयुक्त हो उसी के आधार पर क्रय प्रतिफल ज्ञात किया जाता है | ये  विधियाँ निम्न है -

    1. एकमुश्त भुगतान विधि  - इस विधि में क्रय प्रतिफल की राशि समझौते के आधार पर तय की जाती है अर्थात प्रश्न में क्रय प्रतिफल की राशि दी हुई रहती है |

    2. शुद्ध सम्पत्ति विधि (Net Assets Method) - इस विधि में क्रेता द्वारा ली गई सम्पतियों के पुनर्मूल्यांकित मूल्यों का योग कर लिया जाता है | इस योग में से Current & Non-Current दायित्वों को जिन्हें लिया गया है, कम कर दिया जाता है | अंतर की राशि क्रय प्रतिफल की राशि होती है |
NOTE 
  1. Net Assets = Assets Taken - Liabilities Taken
  2. Preliminary Expenses, Discount on Issue of Debenture, Advertisement Expenses, Miscellaneous Expenses आदि को शामिल नहीं करना है |
  3. दायित्वों में Equity Share Capital, Reserve & Surplus को शामिल नहीं करना है |
  4. Goodwill को पुनर्मुल्यांकित मूल्य पर शामिल करना है |
    3. शुद्ध भुगतान विधि (Net Payment Method) - इस विधि में क्रेता कंपनी द्वारा विक्रेता कंपनी को जो भुगतान किए जाते है, उन सबका योग कर लिया जाता है | क्रेता कंपनी द्वारा किए जाने वाले भुगतान नकद, अंशों एवं ऋणपत्रों में हो सकता है |
NOTE -
  1. लेखा मानक 14 के अनुसार अंश धारियों को किया गया भुगतान क्रय प्रतिफल कहलाता है |
  2. Debenture holders को किया गया भुगतान क्रय प्रतिफल का हिस्सा नहीं होता है |
  3. यदि कोई भुगतान क्रेता कंपनी के माध्यम से न किया जाकर सीधे ही किया जाता है, तो वह भी क्रय प्रतिफल में शामिल नहीं होगा |
    4. अंशों के आतंरिक मूल्य की विधि (Intrinsic Value Method) - इस विधि के अंतर्गत क्रेता कंपनी के अंशों का मूल्य Net Assets Method के आधार पर किया जाता है क्योंकि इस विधि में क्रय प्रतिफल का भुगतान क्रेता कंपनी द्वारा अंशों में किया जाता है तथा विक्रेता कंपनी की  शुद्ध   सम्पतियों के बदले में क्रेता कंपनी द्वारा जारी किए जाने वाले अंशों की  संख्या ज्ञात की  जाती है | अंशों की संख्या के आधार पर क्रय प्रतिफल की गणना होती है |


अन्तः कंपनी विनियोग

कंपनियों के एकीकरण के समय एक कंपनी का दूसरी कंपनी के अंशों में विनियोग हो सकता है अथवा इन कंपनियों द्वारा आपस में एक-दूसरे के अंशों में विनियोग किया हुवा हो सकता है | अन्तः कंपनी विनियोग के सम्बन्ध में तीन परिस्थितियां हो सकती है - 

(1) जब क्रेता कंपनी विक्रेता कंपनी में अंशों की धारक हो - इस स्थिति में क्रेता कंपनी ख़रीदे गए अंशों की सीमा तक विक्रेता कंपनी की स्वामी होता है | विक्रेता कंपनी के व्यवसाय का अधिग्रहण करते समय क्रय प्रतिफल ज्ञात करते समय ऐसे धारित अंशों को ध्यान में रखा जाता है | इस सम्बन्ध में निम्न बातें महत्वपूर्ण है - 

  1. क्रय प्रतिफल की गणना शुद्ध सम्पत्ति विधि शुद्ध भुगतान विधि दोनों में से जो भी उपयुक्त हो उसी के आधार पर की जाएगी |
  2. क्रय प्रतिफल की गणना बाह्य अंशधारियों के लिए करनी है अर्थात क्रेता द्वारा धारित हिस्से को कम कर दिया जाएगा |
  3. विक्रेता की पुस्तकों में अंश पूंजी का जितना भाग क्रेता कंपनी के पास है उससे सम्बंधित पूंजी को रद्द करने की निम्न प्रविष्टि की जाएगी -
  4. क्रेता कंपनी की पुस्तकों में उक्त अंश विनियोग के रूप में दिखाए गए होते है अतः विनियोग को Credit करने की निम्न प्रविष्टि   की जाएगी -

(2) जब विक्रेता कंपनी, क्रेता कंपनी में अंशों की धारक हो - यदि विक्रेता कंपनी ने क्रेता कंपनी के कुछ अंश खरीद रखे हो, तो क्रेता कंपनी द्वारा एकीकरण के समय विक्रेता कंपनी की अन्य सम्पतियों के साथ ऐसे अंश क्रय नहीं कर सकती है क्योंकि कोई भी कंपनी अपने स्वयं के अंशों को क्रय नहीं कर सकती है | एसी दशा में निम्न व्यवहार किए जाएँगे -

  1.  क्रय प्रतिफल की गणना अंशों के आतंरिक मूल्य के आधार पर की जाएगी और यदि क्रेता कंपनी के अंशों का बाजार मूल्य दिया गया हो, तो उसी का प्रयोग कर लिया जाएगा |
  2. विक्रेता कंपनी की शुद्ध सम्पतियों का मूल्य ज्ञात किया जाएगा |
  3. क्रेता कंपनी द्वारा विक्रेता कंपनी को जारी किए जाने वाले अंशों की संख्या में से उन अंशों को घटा दिया जाएगा, जो विक्रेता कंपनी के पास पहले से ही धारण किए हुए है |
  4. विक्रेता कंपनी की पुस्तकों में विनियोग का मूल्य बढ़ाने की निम्न प्रविष्टि की जाएगी -
    NOTE - यदि विनियोग का मूल्य कम हो जाता है, तो इसकी विपरीत प्रविष्टि कर दी जाएगी |
  5. विक्रेता कंपनी द्वारा क्रेता कंपनी से क्रय प्रतिफल के रूप में प्राप्त नए अंश तथा पहले से ही धारित अंशों को जोड़कर अपने समता अंश धारियों में वितरित कर दिया जाएगा | इससे विक्रेता की पुस्तकों में खुला हुवा विनियोग खाता स्वतः ही बंद हो जाएगा |
  6. क्रेता की पुस्तकों में इस सम्बन्ध में कोई व्यवहार नहीं किया जाएगा |
  7. विनियोग की सूचना चिट्ठे में दी हुई होगी जैसे - 2000 Shares in A Ltd.




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